About Dr Ganguli Naturopathy Hospital and Research Center Yog Anusandhan Parishad

हमारी संस्था वर्ष 1991 से नि:शुल्क योग कक्षाओं के द्वारा भोपाल की जनता जनार्दन की सेवा कर रही है। साथ
ही प्राकृतिक चिकित्सा, एक्युपंक्चर, एक्युप्रेशर एवं फिजियोथैरेपी एवं अत्याधुनिक व्यायाम शाला के द्वारा
चैरिटेबल आधार पर चिकित्सा कार्य में सेवारत है। हमारी संस्था भोपाल में सभी सुविधाओं से युक्त योग नेचर
क्योर अस्पताल संचालित है। फिजियोथैरेपी एवं एक्युपंक्चर अस्पताल के आवश्यक अंग हैं। जन सहयोग से
लगभग 35 हजार स्क्वायर फीट (बिल्ट अप ऐरिया) में यह अस्पताल संचालित है।

Vision

To be a premier center for holistic wellness through Yoga and Naturopathy, dedicated to promoting physical, mental, and spiritual health.

Mission

Provide high-quality, evidence-based Yoga and Naturopathic treatments.

About

Our Revered Inspiration Yog Anusandhan Parishad

Our Revered Guide Yog Anusandhan Parishad

योग अनुसंधान परिषद

यही चिरंतन सत्य है। चलना ही जीवन है। अपने असम ब्रह्माण्ड से लेकर सूरज, चांद, सितारे सब गतिमान हैं। पृथ्वी पर भी वहीं जीवित है, और मानव जीवन तो जैसे चलने का ही नाम है। देह की यात्रा सांसों की गति से जुड़ी है। तो जीवन की यात्रा लक्ष्यों को लेकर। जीवन के साथ जब कोई व्यक्ति किसी संस्था को प्रारंभ करता है तो फिर एक नई यात्रा शुरू होती है। ठीक उसी तरह जैसे किसी वृक्ष के हजारों बीजों में कुछ ऐसे निकल आते हैं जिनको उगने के लिए जमीन मिल जाती है, बढऩे के लिए खाद और पानी। कोई भी संस्था एक नन्हें शिशु के समान ही अपनी जीवन यात्रा प्रारंभ करती है और फिर कालक्रम के साथ उसका आकार बढ़ता है, जड़ें मजबूत होती हैं और शाखाएं बढ़ती हैं। उनमें समय के साथ नये पत्ते आते हैं और एक दिन मालूम होता है कि आज कड़ी धूप में हम जिस विशाल वृक्ष की शीतल छांव में खड़े हैं उसको हमने ही रोपा था। भले ही यह सब एक कथा-कहानी सा लगे, लेकिन यही जीवन का वास्तविक सच है। योग अनुसंधान परिषद का भी वास्तविक सच जो आज फिर मील के एक पत्थर को पीछे छोड़ती हुई आगे बढ़ रही है। अपनी अविराम यात्रा के एक नये सोपान और कीर्तिमान की ओर। एक नए संकल्प के साथ नये लक्ष्य की ओर। नई परिकल्पनाओं और जोश के साथ, समय के अगले कालखंड में एक नया चरण। जीवंत संस्थाएं ऐसे अवसरों पर अपने पितृ पुरुषों का गौरव के साथ स्मरण करती हैं जिनके अथक प्रयासों और संकल्पबद्धता से उनका सूत्रपात होता है। असल में यह जैसे प्रकृति का नियम है कि किसी भी अभियान के सूत्रधार उनको प्रारंभ करने के बाद कालक्रम में स्वयं दृश्यपटल से अलग हो जाते हैं। योग अनुसंधान परिषद के ऐसे ही सूत्र पुरुष थे विश्वगुरू योगाचार्य डॉ. के एम गांगुली और जीवन की अंतिम सांस तक संस्था को अपना मार्गदर्शन देते रहे प्रो. गोविंद प्रसाद गुप्ता। जिन्होंने उस समय योग अनुसंधान परिषद को रंगमंच पर उतारा था जब कोई उस अवधारणा की परिकल्पना तक नहीं करता था। उनके अच्छे-खासे हितचिंतक, मित्र तक उनको कहा करते थे कि यह क्या कर रहे हो। योग और प्राकृतिक चिकित्सा तो आदिकाल की बात है, आज आधुनिक दौर में यह मात्र कोरा स्वप्न ही है कि, योग व प्राकृतिक चिकित्सा के आधार पर कोई स्वस्थ्य जीवन व्यतीत कर सकता है। ऐसा संस्थान चलाने का क्या औचित्य? लेकिन लीक से हटकर चलने वाले लोग दूसरे ही हुआ करते हैं। धुन के पक्के लोग अपनी क्षमताओं पर पूरा भरोसा रखने वाले दृढ संकल्प के लोग। इसलिए वे जवाब में हंसकर कहा करते थे कि पानी में तो सब नाव चला लेते हैं, हम रेत में नाव चलाकर दिखाएंगे। मान लिया कि आज तक ऐसा किसी ने नहीं किया लेकिन एक हिम्मत करके अपनी नाव को रेत में उतारो तो सही। देखना उसमें भी तुम चप्पू चलाते हुए अपनी नाव को आगे ले जाओगे। अब इस विवरण में जाने की जरूरत नहीं है कि पिछले 32 साल में योग अनुसंधान परिषद ने अपनी यात्रा में कितनी मंजिलों को पार करते हुए पीछे छोड़ा। एक उर्दू बहुल्य नगर में योग अनुसंधान परिषद की इस यात्रा का असर केवल इस नगर में ही नहीं वरन् प्रदेश के अन्य जिलों में भी हुआ। आज लोगों में जिस तरह योग व प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति रुझान बढ़ा है उससे किसी तरह का आश्चर्य नहीं होता, लेकिन वास्तविक सच यह है कि जिन हालात में योग अनुसंधान परिषद ने अपनी यात्रा का पहला चरण रखा था तब एक से बढ़कर एक दिग्गज पांव तक रखने से हिचकिचाते थे। इस यात्रा में योग अनुसंधान परिषद के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती एक बिल्कुल नये पथ का निर्माण करने के साथ उस वर्ग को भी सामने लाने की थी, जो इस अभियान में उसका सहयोगी बनने के साथ उसका मनोबल बढ़ाने का सबसे मजबूत आधार हो और इस यात्रा में समाजसेवी जगदीश साहिता, शासकीय अधिकारी मोहन सिंह गौर, श्रीराम तिवारी, शासकीय इंजीनियरिंग पेशे से संबंधित एचपी जायसवाल, अकाउंट के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोडऩे वाले ठाकुर लाल शर्मा, पुलिस विभाग में एडीजी के पद को सुशोभित करने वाले विजय वाते, योग सेवा को ईश्वर मानकर योग कक्षाओं में जुटे स्व. रविशंकर वर्मा एवं श्रीमती पुष्पा भदौरिया और पत्रकारिता के साथ-साथ मन में समाजसेवा की भावना लिए हुए मैं (सिकंदर अहमद) शामिल हुए। स्पष्ट है कि किसी भी संस्थान का सबसे बड़ा आधार उसका सदस्य वर्ग ही हुआ करता है। सदस्य ही उसकी सबसे बड़ी ताकत होते हैं क्योंकि उनके समर्थन के बिना सेवा का कोई भी संस्थान आगे बढ़ नहीं सकता, योग अनुसंधान परिषद ने तो उस समय इस क्षेत्र में अपने पांव रखे थे जब योग व प्राकृतिक चिकित्सा को आज जो सुविधाएं उपलब्ध हैं, उनकी पांच प्रतिशत भी तब उपलब्ध नहीं थीं। लेकिन इसके बावजूद योग अनुसंधान परिषद ने अपनी यात्रा प्रारंभ की और वह आज भी निरंतर जारी है। कुछ लोगों को लगता है कि सफल व्यक्ति के लिए अपनी मंजिल तक पहुंचाना इतना कठिन नहीं रहा होगा। वे आज के स्वरूप को देखते हैं, अतीत के उस समय की कल्पना तक नहीं कर पाते, जिनसे होकर व्यक्ति या संस्था सफलता के मार्ग तक पहुंचती है। वैसे आज भी ऐसे अनगिनत क्षेत्र है जहां सफलता की कोई अंतिम मंजिल नहीं है। महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन से जब एक बार पूछा गया कि आखिर आपने इतना ज्ञान कहां से प्राप्त कर लिया तो उनका कहना था कि ज्ञान तो सागर तट पर बिखरी रेत के समान अथाह और अनंत है। आपने ऐसा कैसे सोच लिया कि मैंने बहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया है। मैंने तो ज्ञान के सागर की इस रेत के केवल एक कण मात्र को प्राप्त किया है। आप एक बार इस सागर में उतरिये तो सही, आपको अपने आप पता चल जाएगा कि कोई व्यक्ति कितना ज्ञान प्राप्त कर सकता है। आज हमारे राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में जो भी उपक्रम काम कर रहे हैं, उनके सामने भी यही स्थिति है। चाहे सरकार की विकास और स्वास्थ्य योजनाएं हों उसके समाज सेवा के कार्यक्रम हों, जनता में चेतना और जागरूकता लाने वाले अभियान हों, उनकी कोई सीमा नहीं है। देश और समाज इतना बड़ा है कि एक चरण पूरा होता नहीं कि दूसरा उससे भी बड़ा चरण सामने आ जाता है। वस्तुत: ऐसी ही स्थिति आज हर संस्थान की है जो सेवा स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत् हैं। बात यहीं तक नहीं है। किसी भी क्षेत्र में आज चुनौती तब और सघन हो जाती है जब बगल में चार प्रतिस्पर्धी आकर खड़े हो जाते हैं। योग व प्राकृतिक चिकित्सा में भी आज यह जोरों से चल रहा है। इसके पीछे बिना दवाओं व बिना चीरफाड़ के बेहतर उपचार होना ही एक कारण है। लेकिन योग अनुसंधान परिषद बिना किसी प्रतिस्पर्धा के विचार से इस क्षेत्र में कार्यरत है। उसकी अपनी एक अलग सोच रही है, वह सोच है, 'तेरी सेहत मेरा मजहब-तेरा इलाज मेरा ईमान।Ó जिसका ताल्लुुक केवल व्यापक स्वास्थ्य हित और मानव कल्याण को प्रोत्साहित करने से रहा है। वह सुरुचिपूर्ण सामाजिक सरोकारों के साथ मानव के स्वास्थ्य उत्थान की पक्षधर है। योग और प्राकृतिक चिकित्सा उसके लिए समाज और व्यक्ति के उत्थान का माध्यम तो है, साथ में वह इसके मार्फत अपने से जुड़े लोगों को सदा यह बताने के लिए तत्पर रहती है कि वास्तविकता क्या है। आज के इस युग में इस तरह के सोच के साथ आगे बढऩा कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। ऐसा भी हुआ है कि कई बार यात्रा के कठिन चरणों में हमें लगा है कि शायद अब आगे बढऩा कठिन हो, लेकिन गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की यह पंक्तियां हमेशा हमें सदा प्रेरणा देती रही हैं कि अगर तेरी आवाज सुनकर कोई तेरे साथ न आए तो तू अकेला ही आगे चल, तेरा रास्ता कैसा भी हो, तेरे पांव रास्ते के कांटों से लहूलुहान हो जाएं तो भी तू मत रुक, चलता जा, बढ़ता जा, बढ़ता जा । यह ईश्वर कृपा रही है कि योग अनुसंधान परिषद की यात्रा में उसके सहायकों और हितचिंतकों का एक बड़ा समूह हमेशा उसके साथ रहा है। और यह समूह उसके साथ न केवल वैचारिक अपितु आत्मीय स्तर पर जुड़ा है। यात्रा के हर चरण में वह उसके साथ रहा है। आज जब यात्रा का एक और चरण प्रारंभ हो रहा है तब सहायकों और हितचिंतकों का हृदय से आभार और अभिनंदन। यह आपका साथ और प्रेरणा ही है जिसकी वजह से योग अनुसंधान परिषद इस मुकाम तक पहुंची है और विश्वास रखिये कि आज तक जिस निष्ठा और संकल्पबद्धता के साथ योग अनुसंधान परिषद का साथ आपने दिया है, वह अपनी नई ऊर्जावान और दूरदृष्टि रखने वाली टीम के साथ आपकी अपेक्षाओं की पूर्ति का प्रयास करेगी। और यह यात्रा आगे भी चलती रहेगी। निरंतर...

Meet Our Council Member's

 

Our organization has been serving the people of Bhopal through free yoga classes since 1991. he is engaged in medical work on charitable basis through Naturopathy, Acupuncture, Acupressure and Physiotherapy and modern gymnasium. Our organization is running Yoga Nature Cure Hospital with all facilities in Bhopal.